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रिच डैड पुअर डैड Book Summary in हिंदि

 दोस्तों स्वागत है आप सभी का आज के फिर से एक नएआर्तिक्ल में 

आज हम आपको रॉबर्ट टी कियोसकी की लिखी प्रसिद्ध किताब रिच डैड पूअर डैड की समरी बताने जा रहे हैं यदि आपको इस किताब के हर एक चैप्टर का बिल्कुल बिस्तार से सुनना है तो आप इस आर्तिक्ल में कॉमेंट करके जरूर बताएं हम उस पर भी आर्तिक्ले बनाएंगे।

तो चलिए शुरू करते है आज का ये सफर साथ मिलकर

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क्या स्कूल बच्चों को असली जिंदगी के लिए तैयार करता है? मेरे मम्मी-डैडी कहते थे,

- "मेहनत से पढ़ो और अच्छे नंबर लाओ क्योंकि ऐसा करोगे तो एक अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरी मिल जाएगी।" उनके जीवन का लक्ष्य यही था कि मेरी बड़ी बहन और मेरी कॉलेज की शिक्षा पूरी हो जाए। उनका मानना था कि अगर कॉलेज की शिक्षा पूरी हो गई तो हम जिंदगी में ज़्यादा कामयाब हो सकेंगे। जब मैंने 1976 में अपना डिप्लोमा हासिल किया- मैं फ़्लोरिडा स्टेट युनिवर्सिटी में अकाउंटिंग में ऑनर्स के साथ ग्रैजुएट हुई और अपनी कक्षा में काफ़ी ऊँचे स्थान पर रही - तो मेरे मम्मी-डैडी का लक्ष्य पूरा हो गया था। यह उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। "मास्टर प्लान" के हिसाब से, मुझे एक "बिग 8" अकाउंटिंग फर्म में नौकरी भी मिल गई। अब मुझे उम्मीद थी एक लंबे करियर और कम उम्र में रिटायरमेंट की

मेरे पति माइकल भी इसी रास्ते पर चले थे। हम दोनों ही बहुत मेहनती परिवारों से आए थे जो बहुत अमीर नहीं थे। माइकल ने ऑनर्स के साथ ग्रैजुएशन किया था, एक बार नहीं बल्कि दो बार - पहली बार इंजीनियर के रूप में और फिर लॉ स्कूल से उन्हें जल्दी ही पेटेंट लॉ में विशेषज्ञता रखने वाली वॉशिंगटन, डी.सी. की एक मानी हुई लॉ फर्म में नौकरी मिल गई। और इस तरह उनका भविष्य भी सुनहरा लग रहा था। उनके करियर का नक्शा साफ़ था और यह बात तय थी कि वह भी जल्दी रिटायर हो सकते थे।

हालाँकि हम दोनों ही अपने करियर में सफल रहे, परंतु हम जो सोचते थे, हमारे साथ ठीक वैसा ही नहीं हुआ। हमने कई बार नौकरियाँ बदलीं- हालाँकि हर बार नौकरी बदलने के कारण सही थे - परंतु हमारे लिए किसी ने भी पेंशन योजना में निवेश नहीं किया। हमारे रिटायरमेंट फंड हमारे खुद के लगाए पैसों से ही बढ़ रहे हैं।

हमारी शादी बहुत सफल रही है और हमारे तीन बच्चे हैं। उनमें से दो कॉलेज में हैं और तीसरा अभी हाई स्कूल में गया ही है। हमने अपने बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा दिलाने में बहुत सा पैसा लगाया।

1996 में एक दिन मेरा बेटा स्कूल से घर लौटा। स्कूल से उसका मोहभंग हो गया था। वह पढ़ाई से ऊब चुका था| "मैं उन विषयों को पढ़ने में इतना ज़्यादा समय क्यों बर्बाद करूँ जो असल जिंदगी में मेरे कभी काम नहीं आएँगे?" उसने विरोध किया।

बिना सोचे-विचारे ही मैंने जवाब दिया, "क्योंकि अगर तुम्हारे अच्छे नंबर नहीं आए तो तुम कभी कॉलेज नहीं जा पाओगे ।"

"चाहे मैं कॉलेज जाऊँ या न जाऊँ, " उसने जवाब दिया, "मैं अमीर बनकर दिखाऊँगा।"

"अगर तुम कॉलेज से ग्रैजुएट नहीं हुए तो तुम्हें कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी, "मैंने एक माँ की तरह चिंतित और आतंकित होकर कहा । "बिना अच्छी नौकरी के तुम किस तरह अमीर बनने के सपने देख सकते हो?"

मेरे बेटे ने मुस्कराकर अपने सिर को बोरियत भरे अंदाज़ में हिलाया। हम यह चर्चा पहले भी कई बार कर चुके थे। उसने अपने सिर को झुकाया और अपनी आँखें घुमाने लगा। मेरी समझदारी भरी सलाह एक बार फिर उसके कानों से भीतर नहीं गई थी।

हालाँकि वह स्मार्ट और प्रबल इच्छाशक्ति वाला युवक था परंतु वह नम्र और शालीन भी था।

"मम्मी," उसने बोलना शुरू किया और भाषण सुनने की बारी अब मेरी थी। "समय के साथ चलिए! अपने चारों तरफ़ देखिए; सबसे अमीर लोग अपनी शिक्षा के कारण इतने अमीर नहीं बने हैं| माइकल जॉर्डन और मैडोना को देखिए यहाँ तक कि बीच में ही हार्वर्ड छोड़ देने वाले बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ़्ट कायम किया। आज वे अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्ति हैं और अभी उनकी उम्र भी तीस से चालीस के बीच ही है। और उस बेसबॉल पिचर के बारे में तो आपने सुना ही होगा जो हर साल चालीस लाख डॉलर से ज़्यादा कमाता है जबकि उस पर 'दिमागी तौर पर कमज़ोर " होने का लेबल लगा हुआ है।

हम दोनों काफ़ी समय तक चुप रहे। अब मुझे यह समझ में आने लगा था कि मैं अपने बच्चे को वही सलाह दे रही थी जो मेरे माता-पिता ने मुझे दी थी। हमारे चारों तरफ़ की दुनिया बदल रही थी, परंतु हमारी सलाह नहीं बदली थी।

अच्छी शिक्षा और अच्छे ग्रेड हासिल करना अब सफलता की गारंटी नहीं रह गए थे और हमारे बच्चों के अलावा यह बात किसी की समझ में नहीं आई थीं।

"मम्मी," उसने आगे कहा "मैं डैडी और आपकी तरह कड़ी मेहनत नहीं करना चाहता। आपको काफ़ी पैसा मिलता है और हम एक शानदार मकान में रहते हैं जिसमें बहुत से क़ीमती सामान हैं। अगर मैं आपकी सलाह मानूँगा तो मेरा हाल भी आपकी ही तरह होगा। मुझे भी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी ताकि मैं ज़्यादा टैक्स भर सकूँ और क़र्ज़ में डूब जाऊँ। वैसे भी आज की दुनिया में नौकरी की सुरक्षा बची नहीं है। मैं यह जानता हूँ कि छोटे और सही आकार की फ़र्म कैसी होती हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि आज के दौर में कॉलेज के स्नातकों को कम तनख़्वाह मिलती हैं जबकि आपके ज़माने में उन्हें ज़्यादा तनख्वाह मिला करती थी। डॉक्टरों को देखिए। वे अब उतना पैसा नहीं कमाते जितना पहले कभी कमाया करते थे। मैं जानता हूँ कि मैं रिटायरमेंट के लिए सामाजिक सुरक्षा या कंपनी पेंशन पर भरोसा नहीं कर सकता। अपने सवालों के मुझे नए जवाब चाहिए। "

वह सही था। उसे नए जवाब चाहिए थे और मुझे भी । मेरे माता-पिता की सलाह उन लोगों के लिए सही हो सकती थी जो 1945 के पहले पैदा हुए थे पर यह उन लोगों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती थी जिन्होंने तेज़ी से बदल रही दुनिया में जन्म लिया था| अब मैं अपने बच्चों से यह सीधी सी बात नहीं कह सकती थी, "स्कूल जाओ, अच्छे ग्रेड हासिल करो और किसी सुरक्षित नौकरी की तलाश करो। 

मैं जानती थी कि मुझे अपने बच्चों की शिक्षा को सही दिशा देने के लिए नए तरीक़ो की खोज करनी होगी।

एक माँ और एक अकाउंटेंट होने के नाते मैं इस बात से परेशान थी कि स्कूल में बच्चों को धन संबंधी शिक्षा या वित्तीय शिक्षा नहीं दी जाती। हाई स्कूल ख़त्म होने से पहले ही आज के युवाओं के पास अपना क्रेडिट कार्ड होता है। यह बात अलग है कि उन्होंने कभी धन संबंधी पाठ्यक्रम में भाग नहीं लिया होता है और उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि इसे किस तरह निवेश किया जाता है। इस बात का ज्ञान तो दूर की बात है कि क्रेडिट कार्ड पर चक्रवृद्धि ब्याज की गणना किस तरह की जाती है। इसे आसान भाषा में कहें तो उन्हें धन संबंधी शिक्षा नहीं मिलती और यह ज्ञान भी नहीं होता कि पैसा किस तरह काम करता है। इस तरह वे उस दुनिया का सामना करने के लिए कभी तैयार नहीं हो पाते जो उनका इंतजार कर रही हैं। एक ऐसी दुनिया जिसमें बचत से ज़्यादा ख़र्च को महत्व दिया जाता है।

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जब मेरा सबसे बड़ा बेटा कॉलेज शुरुआती दिनों में अपने क्रेडिट कार्ड को लेकर क़र्ज़ में डूब गया तो मैंने उसके क्रेडिट कार्ड को नष्ट करने में उसकी मदद की। साथ ही मैं ऐसी तरकीब भी खोजने लगी जिससे मेरे बच्चों में पैसे की समझ आ सके।

पिछले साल एक दिन मेरे पति ने मुझे अपने ऑफिस से फोन किया । "मेरे सामने एक सज्जन बैठे हैं और मुझे लगता है कि तुम उससे मिलना चाहोगी।" उन्होंने कहा, "उनका नाम रॉबर्ट कियोसाकी है। वे एक व्यवसायी और निवेशक हैं तथा वे एक शैक्षणिक उत्पाद का पेटेंट करवाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि तुम इसी चीज़ की तलाश कर रही थीं।"

जिसकी मुझे तलाश थी

मेरे पति माइक रॉबर्ट कियोसाकी द्वारा बनाए जा रहे नए शैक्षणिक उत्पाद कैशफ़्लो से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने इसके परीक्षण में हमें बुलवा लिया। यह एक शैक्षणिक खेल था, इसलिए मैंने स्थानीय विश्वविद्यालय में पढ़ रही अपनी 19 वर्षीय बेटी से भी पूछा कि क्या वह मेरे साथ चलेगी और वह तैयार हो गई।

इस खेल में हम लगभग पंद्रह लोग थे जो तीन समूहों में विभाजित

माइक सही थे। मैं इसी तरह के शैक्षणिक उत्पाद की खोज कर रही थी। यह किसी रंगीन मोनोपॉली बोर्ड की तरह लग रहा था जिसके बीच में एक बड़ा सा चूहा था। परंतु मोनोपॉली से यह इस तरह अलग था कि इसमें दो रास्ते थे : एक अंदर और दूसरा बाहरा खेल का लक्ष्य था अंदर वाले रास्ते से बाहर निकलना - जिसे रॉबर्ट 'चूहा दौड़' कहते थे और बाहरी रास्ते पर पहुँचना, या 'तेज़ रास्ते' पर जाना | रॉबर्ट के मुताबिक़ तेज़ रास्ता हमें यह बताता है कि असल जिंदगी में अमीर लोग किस तरह पैसे का खेल खेलते हैं।

रॉबर्ट ने हमें 'चूहा दौड़' के बारे में बताया :

"अगर आप किसी भी औसत रूप से शिक्षित, कड़ी मेहनत करने वाले आदमी की जिंदगी को देखें, तो उसमें आपको एक-सा ही सफ़र दिखेगा। बच्चा पैदा होता है। स्कूल जाता है। माता-पिता खुश हो जाते हैं, क्योंकि बच्चे को स्कूल में अच्छे नंबर मिलते हैं और उसका दाखिला कॉलेज में हो जाता है। बच्चा स्नातक हो जाता है और फिर योजना के अनुसार काम करता है। वह किसी आसान, सुरक्षित नौकरी या करियर की तलाश करता है। बच्चे को ऐसा ही काम मिल जाता है। शायद वह डॉक्टर या वकील बन जाता है। या वह सेना में भर्ती हो जाता है या फिर वह सरकारी नौकरी करने लगता है। बच्चा पैसा कमाने लगता है, उसके पास थोक में क्रेडिट कार्ड आने लगते हैं और अगर अब तक उसने खरीदारी करना शुरू नहीं किया हैं तो अब जमकर खरीदारी शुरू हो जाती हैं।

"खर्च करने के लिए पैसे पास में होते हैं तो वह उन जगहों पर जाता है जहाँ उसकी उम्र के ज़्यादातर नौजवान जाते हैं- लोगों से मिलते हैं, डेटिंग करते हैं और कभी-कभार शादी भी कर लेते हैं। अब जिंदगी में मज़ा आ जाता है, क्योंकि आजकल पुरुष और महिलाएँ दोनों नौकरी करते हैं। दो तनख्वाहें बहुत सुखद लगती हैं। पति-पत्नी दोनों को लगता है कि उनकी जिंदगी सफल हो गई हैं। उन्हें अपना भविष्य सुनहरा नज़र आता है। अब वे घर, कार, टेलीविज़न खरीदने का फ़ैसला करते हैं, छुट्टियाँ मनाने कहीं चले जाते हैं और फिर उनके बच्चे हो जाते हैं। बच्चों के साथ उनके खर्चे भी बढ़ जाते हैं। खुशहाल पति-पत्नी सोचते हैं कि ज़्यादा पैसा कमाने के लिए अब उन्हें ज़्यादा मेहनत करनी चाहिए। उनका करियर अब उनके लिए पहले से ज़्यादा मायने रखता है। वे अपने काम में ज़्यादा मेहनत करने लगते हैं ताकि उन्हें प्रमोशन मिल जाए या उनकी तनख्वाह बढ़ जाए। तनख्वाह बढ़ती हैं पर उसके साथ ही दूसरा बच्चा पैदा हो जाता है। अब उन्हें एक बड़े घर की ज़रूरत महसूस होती हैं। वे नौकरी में और भी ज़्यादा मेहनत करते हैं बेहतर कर्मचारी बन जाते हैं और ज़्यादा मन लगाकर काम करने लगते हैं। ज़्यादा विशेषज्ञता हासिल करने के लिए वे एक बार फिर किसी स्कूल में जाते हैं ताकि वे ज़्यादा पैसे कमा सकें। हो सकता हैं कि वे दूसरा काम भी खोज लें। उनकी आमदनी बढ़ जाती हैं, परंतु उस आमदनी पर उन्हें इन्क्रम टैक्स भी चुकाना पड़ता है। यही नहीं, उन्होंने जो बड़ा घर खरीदा है उस पर भी टैक्स देना होता है। इसके अलावा उन्हें सामाजिक सुरक्षा का टैक्स तो चुकाना ही है। इसी तरह, बहुत से टैक्स चुकाते- चुकाते उनकी तनख्वाह चुक जाती हैं। वे अपनी बड़ी हुई तनख्वाह लेकर घर आते हैं और हैरान होते हैं कि इतना सारा पैसा आखिर कहाँ चला जाता है। भविष्य के लिए बचत के हिसाब से वे कुछ म्यूचुअल फंड भी खरीद लेते हैं और अपने क्रेडिट कार्ड से घर का किराना खरीदते हैं। उनके बच्चों की उम्र अब 5 या 6 साल हो जाती हैं। यह चिंता भी उन्हें सताने लगती हैं। कि बच्चों के कॉलेज की शिक्षा के लिए भी बचत ज़रूरी है। इसके साथ ही उन्हें अपने रिटायरमेंट के लिए पैसा बचाने की चिंता भी सताने लगती है।"

"35 साल पहले पैदा हुए यह खुशहाल दंपति अब अपनी नौकरी के बाक़ी दिन चूहा दौड़ में फँसकर बिताते हैं। वे अपनी कंपनी के मालिकों के लिए काम करते हैं, सरकार को टैक्स चुकाने के लिए काम करते हैं, और बैंक में अपनी गिरवी संपत्ति तथा क्रेडिट कार्ड के कर्ज को चुकाने के लिए काम करते हैं।

"फिर वे अपने बच्चों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें मन लगाकर पढ़ना चाहिए अच्छे नंबर लाने चाहिए और किसी सुरक्षित नौकरी की तलाश करनी चाहिए। वे पैसे के बारे में कुछ भी नहीं सीखते और इसीलिए वे जिंदगी भर कड़ी मेहनत करते रहते हैं। यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलतीरहती हैं। इसे 'चूहा दौड़' कहते हैं।"

"चूहा दौड़" से निकलने का एक ही तरीका है और वह यह कि आप अकाउंट्स और इन्वेस्टमेंट दोनों क्षेत्रों में निपुण हो जाएँ। दिक्कत यह है कि इन दोनों ही विषयों को बोरिंग और कठिन माना जाता है। मैं खुद एक सी. पी. ए. हूँ और मैंने बिग 8 अकाउंटिंग फर्म के लिए काम किया है। मुझे यह देखकर ताज्जुब हुआ कि रॉबर्ट ने इन दोनों बोरिंग और कठिन विषयों को सीखना कितना रोचक, सरल और रोमांचक बना दिया था। सीखने की प्रक्रिया इतनी अच्छी तरह छुपा ली गई थी कि जब हम "चूहा दौड़ " से बाहर निकलने के लिए जी जान लगा रहे थे तो हमें यह ध्यान ही नहीं रहा कि हम कुछ सीख रहे थे।

शुरू में तो हम एक नए शैक्षणिक खेल का परीक्षण कर रहे थे, परंतु जल्दी ही इस खेल में मुझे और मेरी बेटी को मज़ा आने लगा। खेल के दौरान हम दोनों ऐसे विषयों पर बात कर रहे थे जिनके बारे में हमने पहले कभी बातें नहीं की थीं। एक लेखापाल होने के कारण इन्क्रम स्टेटमेंट और बैलेंस शीट से जुड़ा खेल खेलने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। मैंने खेल के नियम और इसकी बारीकियाँ समझाने में अपनी बेटी और दूसरे लोगों की मदद भी की। उस रोज़ में 'चूहा दौड़' से सबसे पहले बाहर निकली और केवल मैं ही बाहर निकल पाई। बाहर निकलने में मुझे 50 मिनट का समय लगा हालाँकि खेल लगभग तीन घंटे तक चला।

मेरी टेबल पर एक बैंकर बैठा था। इसके अलावा एक व्यवसायी था, और एक कंप्यूटर प्रोग्रामर भी था। मुझे यह देखकर बहुत हैरत हुई कि इन लोगों को अकाउंटिंग या इन्वेस्टमेंट के • बारे में कितनी कम जानकारी हैं, जबकि ये विषय उनकी जिंदगी में कितनी ज़्यादा एहमियत रखते हैं। मेरे मन में यह सवाल भी उठ रहा था कि वे असल जिंदगी में अपने पैसे थेले के कारोबार को कैसे सँभालते होंगे। मैं यह समझ सकती थी कि मेरी 19 साल की बेटी क्यों नहीं समझ सकती, पर ये लोग तो उससे दुगनी उम्र के थे और उन्हें ये बातें समझ में आनी चाहिए थीं।

'चूहा दौड़' से बाहर निकलने के बाद मैं दो घंटे तक अपनी बेटी और इन शिक्षित अमीर वयस्कों को पाँसा फेंकते और अपना बाज़ार फैलाते देखती रही। हालाँकि मैं खुश थी कि वे लोग कुछ नया सीख रहे थे, लेकिन मैं इस बात से बहुत परेशान और विचलित भी थी कि वयस्क लोग सामान्य अकाउंटिंग और इन्वेस्टमेंट के मूलभूत बिंदुओं के बारे में कितना कम जानते थे। उन्हें अपने इन्कम स्टेटमेंट और अपनी बैलेंस शीट के आपसी संबंध को समझने में ही बहुत समय • लगा। अपनी संपत्ति खरीदने और बेचते समय उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि हर सौंदे से उनकी महीने की आमदनी पर असर पड़ रहा है। मैंने सोचा, असल जिंदगी में ऐसे करोड़ों लोग होंगे जो पैसे के लिए सिर्फ इसलिए परेशान हो रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ये दोनों विषय कभी नहीं पड़े।

मैंने मन में सोचा, भगवान का शुक्र हैं कि हमें मज़ा आ रहा हैं और हमारा लक्ष्य खेल में जीतना हैं। जब खेल ख़त्म हो गया तो रॉबर्ट ने हमें पंद्रह मिनट तक कैशपलो पर चर्चा करने और इसकी समीक्षा करने के लिए कहा।

मेरी टेबल पर बैठा व्यवसायी खुश नहीं था। उसे खेल पसंद नहीं आया था । "मुझे यह सब जानने की कोई ज़रूरत नहीं हैं, “उसने ज़ोर से कहा "मेरे पास इन सबके लिए अकाउंटेंट, बैंकरऔर वकील हैं, जिन्हें यह सब मालुम हैं।"

रॉबर्ट का जवाब था, “क्या आपने गौर किया हैं कि ऐसे बहुत से अकाउंटेंट हैं जो अमीर नहीं हैं? और यही हाल बैंकर्स, वकीलों, स्टॉक ब्रोकर्स और रियल एस्टेट ब्रोकर्स का भी हैं। वे बहुत कुछ जानते हैं और प्राय: वे लोग स्मार्ट होते हैं परंतु उनमें से ज़्यादातर अमीर नहीं होते। चूँकि हमारे स्कूल हमें वह सब नहीं सिखाते जो अमीर लोग जानते हैं, इसलिए हम इन लोगों से सलाह लेते हैं। परंतु एक दिन जब आप किसी हाईवे पर कार से जाते हैं, आप ट्रैफिक जाम में फँस जाते हैं। आप बाहर निकलने के लिए छटपटाते हैं। जब आप अपनी दाई तरफ़ देखते हैं तो वहाँ आप देखते हैं कि आपका अकाउंटेंट भी उसी ट्रैफ़िक जाम में फँसा हुआ है। फिर आप अपनी बाई तरफ देखते हैं और आपको वहाँ अपना बँकर भी उसी हाल में नज़र आता है। इससे आपको हालात का अंदाज़ा हो जाएगा।"

कंप्यूटर प्रोग्रामर भी इस खेल से प्रभावित नहीं हुआ था। "यह सीखने के लिए मैं सॉफ्टवेयर खरीद सकता हूँ।"

बैंकर ज़रूर प्रभावित हुआ था। “मैंने स्कूल में अकाउंटिंग सीखी थी, परंतु मैं अब तक यह नहीं समझ पाया था कि इसे असल जिंदगी में किस तरह काम में लाया जाए। अब मैं समझ गया हूँ। मुझे 'चूहा दौड़' से बाहर निकलने के लिए खुद को तैयार करने की ज़रूरत हैं।"

परंतु मेरी पुत्री के विचारों से मैं सबसे ज़्यादा रोमांचित हुई। उसने कहा, “मुझे सीखने में बड़ा मज़ा आया। मैंने इस बारे में बहुत कुछ सीखा कि पैसा असली में किस तरह काम करता है और इसका निवेश किस तरह करना चाहिए "

फिर उसने आगे कहा, “अब मैं जानती हूँ कि मैं अपने काम करने के लिए किस तरह का व्यवसाय लूँ और यह व्यवसाय चुनने का कारण नौकरी की सुरक्षा, उससे मिलने वाले फायदा या तनख्वाह नहीं होंगे। अगर मैं इस खेल में सिखाई जाने वाली बातें सीख जाती हूँ तो मैं कुछ भी करने के लिए आज़ाद हूँ और वह सीखने के लिए आज़ाद हूँ जो मैं दिल से सीखना चाहती हूँ। अभी तक मुझे उस चीज़ को सीखना पड़ता था जिससे मुझे नौकरी पाने में मदद मिले। अगर मैं यह खेल सीख जाती हूँ तो मुझे नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की ज़्यादा चिंता नहीं होगी, जैसी कि मेरी बहुत सी सहेलियों को होती हैं।”

खेल ख़त्म होने के बाद मुझे रॉबर्ट से बात करने के लिए ज्यादा समय नहीं मिला। हमने उनकी योजना पर आगे बातें करने के लिए बाद में मिलने का फ़ैसला किया। इतना तो मैं जानती थी कि इस खेल के बहाने रॉबर्ट यह चाहते थे कि लोगों में पैसे की बेहतर समझ विकसित हो जाए। यही कारण था कि मैं उनकी योजनाओं के बारे में ज़्यादा जानने के लिए उत्सुक थी।

मेरे पति और मैंने रॉबर्ट और उनकी पत्नी के साथ अगले हफ्ते फडिनर मीटिंग रख ली। हालाँकि यह हमारा पहला सामाजिक मेल-जोल था, फिर भी हमें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हम एक-दूसरे को बरसों से जानते हों।

हमने पाया कि हममें बहुत सी बातें एक जैसी हैं। हमने बहुत से विषयों पर बातें कीं खेलों, नाटकों, रेस्तराँओं और सामाजिक-आर्थिक विषयों पर हमने बदलती हुई दुनिया के बारे में भीबातें कीं। हमने इस मुद्दे पर बहुत समय तक विचार किया कि ज़्यादातर अमेरिकी कैसे अपने रिटायरमेंट के लिए बहुत कम पैसा बचा पाते हैं या बिलकुल भी नहीं बचा पाते। हमने सामाजिक सुरक्षा और मेडिकेयर की लगभग दीवालिया हालत पर भी विचार किया। क्या हमारे बच्चों को 7. 5 करोड़ वृद्ध लोगों के रिटायरमेंट के लिए टैक्स चुकाना होगा? हम हैरान थे कि लोग पेंशन योजना के भरोसे बैठकर कितना बड़ा ख़तरा मोल ले रहे हैं।

रॉबर्ट की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि अमीरों और ग़रीबों के बीच फ़ासला लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसा न सिर्फ़ अमेरिका में हो रहा है, बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है। रॉबर्ट स्वशिक्षि और स्वनिर्मित व्यवसायी थे। वे दुनिया भर में निवेश कर चुके थे और 47 वर्ष की उम्र में रिटायर होने में सफल हो गए थे। वे काम इसलिए कर रहे थे क्योंकि उन्हें भी वही चिंता थी, जो मुझे अपने बच्चों को लेकर सता रही थी| वे जानते हैं कि दुनिया बदल चुकी है परंतु इसके बावजूद शिक्षा पद्धतियाँ बिलकुल भी नहीं बदली थीं। रॉबर्ट के अनुसार, बच्चे सालों तक दकियानूसी शिक्षा पद्धति में अपना समय गुज़ारते हैं और ऐसे विषय पढ़ते हैं जो उनके जीवन में कभी भी, कहीं भी काम नहीं आने वाले हैं और वे ऐसी दुनिया के लिए तैयारी करते हैं जिसका अब नामोनिशान भी नहीं बचा है।

“आज, आप किसी भी बच्चे को जो सबसे ख़तरनाक सलाह दे सकते हैं वह यह है, 'स्कूल जाओ, अच्छे नंबर लाओ और कोई सुरक्षित नौकरी ढूँढो। “उन्होंने कहा, “यह पुरानी सलाह है और यह ख़राब सलाह है। अगर आप यह देख सकते हैं कि एशिया, यूरोप, दक्षिण अमेरिका में क्या हो रहा है तो आप भी उतनी ही चिंतित होंगी जितना कि माँ”

रॉबर्ट के अनुसार यह बुरी सलाह हैं, “क्योंकि अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे का भविष्य आर्थिक रूप से सुरक्षित हो, तो आप पुराने नियमों के सहारे नए खेल को नहीं खेल सकते। यह बहुत ख़तरनाक होगा।”

मैंने उससे पूछा कि “पुराने नियमों" से उसका क्या मतलब है?

"मेरी तरह के लोग अलग तरह के नियमों से खेलते हैं और आपकी तरह के लोग पुराने नियमों की लीक पर ही चलते रहते हैं,” उन्होंने कहा, "क्या होता है जब कोई कॉरपोरेशन स्टाफ़ कम करने की घोषणा करता है?"

“लोगों को नौकरी से निकाल दिया जाता है। परिवार तबाह हो जाते हैं। बेरोज़गारी बढ़ जाती हैं।"

“हाँ, परंतु कंपनी पर इसका क्या असर पड़ता है, खासकर जब वह कंपनी स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज हो?"

“जब स्टाफ़ कम करने की घोषणा होती है तो स्टॉक की क़ीमत बढ़ जाती हैं, “मैंने कहा "जब कंपनी तनख्वाह का ख़र्च कम करती हैं तो बाज़ार इस बात को पसंद करता है, ऐसा चाहे स्टाफ़ कम करके किया जाए या फिर कंप्यूटर के माध्यम से किया जाए।”

उन्होंने कहा, “आप ठीक कह रही हैं। और जब स्टॉक की क़ीमतें बढ़ती हैं तो मेरी तरह केलोग यानी जिनके पास उस कंपनी के शेयर होते हैं वे ज़्यादा अमीर हो जाते हैं। अलग तरह के नियमों से मेरा यही आशय था। कर्मचारी हारते हैं; मालिक और निवेशक जीतते हैं।”

रॉबर्ट कर्मचारी और मालिक के बीच के फर्क को समझा रहे थे। यह फ़र्क़ था अपनी क़िस्मत पर ख़ुद अपना नियंत्रण होना या फिर अपनी क़िस्मत पर किसी दूसरे का नियंत्रण होना

“परंतु ज़्यादातर लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि ऐसा क्यों होता है, “ मैंने कहा, "उन्हें लगता है कि यह ठीक नहीं है।"

उसका जवाब था, “इसीलिए तो बच्चों से यह कहना मूर्खता है, 'अच्छी शिक्षा प्राप्त करो।' यह सोचना मूर्खता है कि स्कूलों में दी जा रही शिक्षा से बच्चे उस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार हो जाएँगे जिसमें वे कॉलेज के बाद पहुँचने वाले हैं। हर बच्चे को ज़्यादा शिक्षा की ज़रूरत है। एक अलग तरह की शिक्षा की। और उन्हें नए नियमों को जानने की भी ज़रूरत है। अलग तरह के नियमों को जानने की।”

“धन के कुछ नियम होते हैं जिनसे अमीर लोग खेलते हैं और धन के कुछ और नियम होते हैं जिनसे बाक़ी 95 फिसदी लोग खेलते हैं। और ये 95 फिसदी लोग उन नियमों को अपने घर और स्कूल में सीखते हैं। इसीलिए आजकल किसी बच्चे से यह कहना ख़तरनाक हैं, ' लगाकर पढ़ो और अच्छी नौकरी खोजो ।' आज बच्चों को अलग तरह की शिक्षा की ज़रूरत है और आज की शिक्षा नीति उन्हें कुछ मूलभूत बातें नहीं सिखा पा रही है। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि क्लासरूम में कितने कंप्यूटर रखे हैं या स्कूल कितना पैसा ख़र्च कर रहे हैं। जब शिक्षा नीति में वह विषय ही नहीं है, तो उसे किस तरह पढ़ाया जा सकता है।"

अब सवाल यह उठता है कि किस तरह माता-पिता अपने बच्चों को वह सिखा सकते हैं जो वे स्कूल में नहीं सीख पाते? आप अपने बच्चे को अकाउंटिंग किस तरह सिखाते हैं? क्या इससे वे बोर नहीं हो जाते? और आप उन्हें किस तरह निवेश करना सिखाएँगे जब एक पालक के रूप में आप खुद निवेश के ख़तरे से डरते हैं? अपने बच्चों को सुरक्षित जीवन के लिए तैयार करने के बजाय मैंने यह बेहतर समझा कि उन्हें रोमांचक जीवन के लिए तैयार किया जाए

“तो आप किस तरह किसी बच्चे को धन और उन सब चीज़ों के बारे में सिखा सकते हैं जिन पर हमने अभी विचार किया है?” मैंने रॉबर्ट से पूछा “हम किस तरह इसे माता-पिता के लिए आसान बना सकते हैं, खासकर तब जब उन्हें खुद ही इसकी समझ न हो।”

उन्होंने कहा, "मैंने इस विषय पर एक पुस्तक लिखी है।”

"वह पुस्तक कहाँ है?"

"मेरे कंप्यूटर में। यह बरसों से वहीं बिखरी पड़ी है। मैं कभी-कभार उसमें कुछ बातें जोड़ देता हूँ परंतु मैं आज तक उसे कभी इकट्ठा नहीं कर पाया। मैंने इस पुस्तक को तब लिखना शुरू किया था जब मेरी पहली पुस्तक बेस्टसेलर हो गई थी, परंतु मैं अभी तक अपनी नई पुस्तक को पूरा नहीं कर पाया हूँ। यह अभी भी खंडों में है।"

और वह पुस्तक निश्चित रूप से खंडों में ही थी। उन बेतरतीब खंडों को पढ़ने के बाद मैंनेयह फ़ैसला किया कि पुस्तक निश्चित रूप से बेहतरीन थी और समाज में इसकी बहुत ज़रूरत थी, ख़ासकर ऐसे समय में जब दुनिया तेज़ी से बदल रही थी। हम दोनों तत्काल इस निर्णय पर पहुँचे कि मैं रॉबर्ट की पुस्तक में सह-लेखक बन जाऊँ ।

मैंने उनसे पूछा कि उनके विचार से किसी बच्चे को कितनी वित्तीय शिक्षा की ज़रूरत होती है। उन्होंने कहा कि यह बच्चे पर निर्भर करता है। अपने बचपन में ही उन्होंने यह जान लिया था कि वे अमीर बनना चाहते थे और उन्हें एक ऐसे पितास्वरूप व्यक्ति मिल गए थे जो अमीर थे और जो उनका मार्गदर्शन करने के इच्छुक भी थे। रॉबर्ट का कहना था कि शिक्षा ही सफलता की नींव है। जिस तरह स्कूल में सीखी गई बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, उसी तरह धन संबंधी समझ और बोलने की कला भी महत्वपूर्ण होती हैं।

आगे की कहानी रॉबर्ट के दो डैंडियों के बारे में हैं, जिनमें से एक अमीर हैं और दूसरे ग़रीबा इनके जरिए रॉबर्ट उन रहस्यों को बताएँगे जो उन्होंने अपने जीवन में सीखे हैं। दोनों डैंडियों के बीच का अंतर एक ख़ास बात उजागर करता है। इस पुस्तक को मैंने बढ़ाया है, इसमें कुछ जोड़ा और घटाया है और इसे व्यवस्थित करने का काम किया है। जो अकाउंटेंट इस पुस्तक को पढ़ें, उनसे मेरा यही अनुरोध है कि वे अपने किताबी ज्ञान को एक तरफ रख दें और अपने दिमाग में रॉबर्ट के सिद्धांतों को घुस जाने दें। हालाँकि उनमें से कई सिद्धांत पहली नज़र में ग़लत लगेंगे, अकांउट्स के सिद्धांतों की बुनियादी बातों को चुनौती देते लगेंगे, परंतु यह याद रखें कि वे एक महत्वपूर्ण दृष्टि देते हैं कि किस तरह सच्चे निवेशक अपने निवेश के फैसलों का विश्लेषण करते

जब हम अपने बच्चों को "स्कूल जाने, मेहनत से पढ़ने और अच्छी नौकरी पाने " की सलाह देते हैं तो अक्सर हम ऐसा सांस्कृतिक आदतों के कारण करते हैं। ऐसा करना हमेशा सही चीज़ मानी गई है। जब मैं रॉबर्ट से मिली तो उनके विचारों ने शुरू में तो मुझे चौंका दिया। दो डैंडियों के साथ पले-बढ़े रॉबर्ट के सामने दो अलग-अलग लक्ष्य होते थे। उनके पढ़े-लिखे डैडी उन्हें कॉरपोरेशन में नौकरी करने की सलाह देते थे। उनके अमीर डैडी उन्हें कॉरपोरेशन का मालिक बनने की सलाह देते थे। दोनों ही कामों में शिक्षा की जरूरत थी, परंतु पढ़ाई के विषय बिलकुल अलग-अलग थे। पढ़े-लिखे डैडी रॉबर्ट को स्मार्ट बनने के लिए प्रोत्साहित करते थे। अमीर डैडी रॉबर्ट को यह जानने के लिए प्रोत्साहित करते थे कि किस तरह स्मार्ट लोगों की सेवाएँ ली जाएँ।

दो डैंडियों के होने से कई समस्याएँ भी पैदा हुई। रॉबर्ट के असली डैडी हवाई राज्य में शिक्षाप्रमुख थे। जब रॉबर्ट 16 साल के हुए तो उन्हें इस बात की कोई ख़ास चिंता नहीं सता रही थी, "अगर तुम्हें अच्छे नंबर नहीं मिलते तो तुम्हें कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी।" वे पहले से ही जानते थे कि उनके करियर का लक्ष्य था कॉरपोरेशन का मालिक बनना, न कि उसमें नौकरी करना। सच तो यह है कि अगर हाई स्कूल में समझदार और मेहनती परामर्शदाता नहीं मिला होता तो रॉबर्ट कभी कॉलेज भी नहीं गए होते। वे इस बात को मानते हैं। वे दौलत कमाने के लिए बेताब थे परंतु वे आखिरकार मान ही गए कि कॉलेज की शिक्षा से भी उन्हें फायदा हो सकता है।

दरअसल इस पुस्तक में दिए गए विचार शायद बहुत से माता-पिताओं को क्रांतिकारी और अतिशयोक्तिपूर्ण लगेंगे। कई लोगों को तो अपने बच्चों को स्कूल में रखने में ही काफी मेहनतकरनी पड़ रही है। परंतु बदलते हुए समय को देखते हुए हमें नए और जोखिम भरे विचारों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। अपने बच्चों को कर्मचारी बनने की सलाह देने का मतलब यह है कि हम उन्हें जिंदगी भर अपनी खून-पसीने की कमाई से इन्कम टैक्स व और भी न जाने कितने टैक्स चुकाने की सलाह देते हैं और इसके बाद भी पेंशन की कोई गारंटी नहीं होती। और यह सच है कि आज के ज़माने में टैक्स किसी व्यक्ति का सबसे बड़ा खर्च है। हक़ीकत में, ज्यादातर परिवार तो जनवरी से आधी मई तक सिर्फ अपने टैक्स चुकाने के लिए ही सरकार की नौकरी करते हैं। आज नए विचारों की बहुत ज़रूरत है और यह पुस्तक हमें नए विचार देती है।

रॉबर्ट का दावा है कि अमीर लोग अपने बच्चों को अलग तरह की शिक्षा देते हैं। वे अपने बच्चों को घर पर सिखाते हैं, डिनर टेबल परा हो सकता है कि यह विचार वे न हों जिन पर आप अपने बच्चों के साथ बातें करते हों, परंतु उन पर नज़र डालने के लिए धन्यवादा और मैं आपको सलाह देती हूँ कि आप खोज करते रहें। एक माँ और एक सी. पी. ए. होने के नाते मैं तो यही सोचती हूँ कि अच्छे नंबर लाना और एक बढ़िया नौकरी पा लेना एक पुराना विचार है। हमें अपने बच्चों को नए तरह के विचार देने होंगे। हमें उन्हें अलग तरह की शिक्षा देनी होगी। शायद हम अपने बच्चों को यह सिखाएँ कि अच्छे कर्मचारी होने के साथ-साथ वे अपना खुद का निवेश कॉरपोरेशन भी खोल सकें। दोनों का यह तालमेल बढ़िया रहेगा।

एक माँ होने के नाते मुझे उम्मीद है कि यह पुस्तक सभी अभिभावकों के लिए फायदेमंद होगी। रॉबर्ट लोगों को यह बताना चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर ठान ले, तो अमीर बन सकता है। अगर आप एक माली या गेटकीपर हैं या पूरी तरह बेरोज़गार हैं तो भी आपमें : खुद को और अपने परिवार के लोगों को धन संबंधी बातें सिखाने की काबिलियत है। यह याद रखें कि धन संबंधी बुद्धि वह दिमाग़ी तरीका है जिससे हम अपनी धन संबंधी समस्याओं को सुलझाते हैं।

आज हम ऐसे विश्वव्यापी तकनीकी परिवर्तनों का सामना कर रहे हैं, जिनका सामना हमने आज से पहले कभी नहीं किया। किसी के पास भी जादू की पुड़िया नहीं है, परंतु एक बात तो तय है: ऐसे परिवर्तन हमारे सामने आने वाले हैं जो हमारे यथार्थ से परे हैं। कौन जाने भविष्य हमारे लिए क्या लाता है? पर जो भी हो हमारे पास दो मूलभूत विकल्प मौजूद हैं: या तो हम सुरक्षा की राह पर चलें या फिर हम स्मार्ट बनकर खुद को धन संबंधी क्षेत्रों में शिक्षित करें और अपने बच्चों की धन संबंधी प्रतिभा को भी जागृत करें।








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