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ईर्ष्या और द्वेष

 ईर्ष्या और द्वेष

 सामान्य ईर्ष्या - द्वेष तो सामान्य जीवन के ही लक्षण हैं , किंतु असामान्य ईर्ष्या - द्वेष तो केवल मानसिक रोग के लक्षण हैं । इनसे क्रोध और घृणा पैदा होने लगती है , जो कई रोगों को बढ़ाती जाती है ।

 सामान्य ईर्ष्या - द्वेष तो उन्नति में सहायता करता है , जबकि असामान्य ईर्ष्या - द्वेष मानसिक क्लेश ही पहुंचाता है । थोड़े से मानसिक सुख का आभास अवश्य मिल जाता है , शरीर को हुई हानि का आभास नहीं हो पाता है । ईर्ष्या और द्वेष एक मीठे विष की तरह कार्य करती है और मानव को अंदर से खोखला बनाती जाती है ।

 सुखी जीवन जीने के लिए इनको काबू में रखना चाहिए , तभी मानसिक सुख - शांति संभव है । ईर्ष्या - द्वेष की तुलना एक उल्लू के बच्चे के साथ भी की जाती है , क्योंकि यह विवेक के अभाव में ही पैदा होती है । हर व्यक्ति में कुछ - न - कुछ दुर्बलताएं अवश्य होती हैं । किसी की सुख - समृद्धि देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए । 

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