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क्रोध

 क्रोध 

क्रोध की तुलना उन कुत्तों के साथ की जाती है , जो आपस में लड़ रहे हों । कुत्ते जब आपस में लड़ते हैं , तो पूरी तरह से स्वयं पर नियंत्रण खो देते हैं । हमारे शास्त्रों में दुर्वासा ऋषि को क्रोध का प्रतीक माना जाता है , जो अपने दस हजार अनुयाइयों के साथ घूमते रहते हैं । ये अनुयायी क्रोध से पैदा होने वाली दस हजार बुराइयां , दुख और कष्टों को दर्शाते हैं 





 जब भी कोई व्यक्ति क्रोध की अवस्था में होता है , तो दुखों और बुराइयों की ओर बढ़ता ही जाता है । फिर बुराइयों का ऐसा क्रम बन जाता है कि एक बुराई से दूसरी बुराई का जन्म होता जाता है । 

महाभारत के एक प्रसंग में जब यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि किस बात को त्यागने से व्यक्ति कई क्लेशों से मुक्त हो जाता है , तो युधिष्ठिर ने ' क्रोध ' का नाम ही लिया था ।

क्रोध को त्यागना वैसे बहुत ही कठिन कार्य है । हमारे शास्त्र क्रोध से संबंधित कथानकों से भरे पड़े हैं , जिनमें यह बताने का प्रयास किया जाता है कि किस प्रकार क्रोध व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाता है । एक बुद्धिमान व्यक्ति भी क्रोध में पागलों की तरह व्यवहार करने लगता है । 

गीता में भी काम , क्रोध और लोभ ये तीन नरक के द्वार माने गए हैं । ये मानव को सीधा नरक पहुंचाते हैं । क्रोध में जब व्यक्ति पागल - सा हो जाता है , तो फिर उसे अच्छे - बुरे का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहता है । काम - वासनाओं का बिगड़ा हुआ रूप ही क्रोध है । जब भी किसी इच्छा की पूर्ति में बाधा आती है , तो उससे क्रोध आ जाता है । क्रोध की अवस्था में मन भी भ्रमित हो जाता है , इस कारण भी उसे अच्छे - बुरे का ध्यान नहीं रहता ।

 जब किसी व्यक्ति का क्रोध पर नियंत्रण होने लगता है , तो उसके अंदर ऊर्जा का नया स्रोत फूटने लगता है । 

क्रोध की जड़ें व्यक्ति के अहम् में छिपी हुई होती हैं , जो अवसर ही फूटने लगती हैं । क्रोध पर नियंत्रण तभी पाया जा सकता है , जब व्यक्ति अपने अंदर क्षमा , प्रेम , शांति , करुणा और मित्रता जैसे भावों को जगा ले ।

 यदि कोई आपको गाली देता है , तो भी आप शांत रहकर उसे सुन लीजिए । उस पर कोई भी प्रतिक्रिया मत दीजिए । आप देखेंगे कि इससे आपके अंदर एक नई ऊर्जा शक्ति पैदा हो जाएगी , जो आपको एक विशेष आनंद देने लगेगी ।

 क्रोध को कई प्रकार के रोगों की जननी माना जाता है । यह कई प्रकार के दिल और नर्वस सिस्टम संबंधी रोग लगा देता है तथा रक्त में एक विशेष प्रकार के विष की मात्रा बढ़ा देता है , जिससे रक्तचाप बढ़ने लगता है । एक बार के क्रोध से नर्वस सिस्टम को इतनी अधिक हानि हो जाती है कि उसे फिर से सामान्य होने में काफी समय लगता है । इसीलिए क्रोध को नरक का द्वार एवं मानसिक शांति का एक मुख्य शत्रु माना गया है । क्रोध पर नियंत्रण किए बिना कोई भी व्यक्ति मानसिक शांति नहीं प्राप्त कर सकता ।

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