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लोभ

 लोभ

 मानसिक शांति प्राप्ति के मार्ग में बाधा पहुंचाने वाला एक शत्रु लोभ है । संसार में लोभ को सबसे बड़ा रोग माना गया है । लोभ की तुलना गिद्ध पक्षी से की जाती है । जिस प्रकार से गिद्ध अच्छी - बुरी सभी प्रकार की चीजें खा जाता है । उसी प्रकार से लोभी व्यक्ति भी बिना सोचे - बिचारे सब कुछ हड़प कर जाता है । लोभ को त्यागने से प्रसन्नता होती है । लोभी व्यक्ति सदा दुखी ही रहता है । इसीलिए गीता में लोभ को भी नरक का द्वार माना गया है । किंतु लोभ से छुटकारा पाना बहुत कठिन है । केवल संतोष से ही लोभ को कम किया जा सकता है ।





                                            सच्ची घटना

 प्रत्येक धर्म - ग्रंथ लोभ के प्रभाव को बताने वाली काल्पनिक कथाओं से भरे पड़े हैं , किंतु मैं आपको लोभ संबंधी एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूं जब किसी व्यक्ति के पास धन अधिक मात्रा में आने लगता है , तो उसका लोभ और भी अधिक बढ़ने लग जाता है । राकफेलर की गिनती संसार के सबसे धनी व्यक्तियों में की जाती थी । धन कमाने की योजनाओं में उनका दिमाग बहुत ही तेज गति से कार्य करता था । अधिक धन कमाने के चक्कर में वह सदा तनाव एवं चिंता से ग्रस्त रहता था । धीरे - धीरे लोभ , चिंता एवं तनाव रूपी तीनों राक्षसों ने मिलकर उस पर आक्रमण कर दिया और उसके अंदर कई प्रकार के रोग पैदा कर दिए । उसको एक ऐसा असाध्य रोग लग गया , जिसे कोई भी बड़े से बड़ा डॉक्टर न समझ सका और न ही उसका इलाज ही कर सका । डॉक्टरों ने स्पष्ट बता दिया कि वह छः मास से अधिक जीवित नहीं रह पाएगा । यह भी एक विडंबना ही थी कि वह लोभी और कंजूस भी था किसी भी सामाजिक कार्य के लिए कभी दान नहीं देता था । अमेरिका का यह सेठ प्रतिदिन लाखों डालर कमा रहा था , किंतु उसका अपना खर्च प्रतिदिन का दस डालर से भी कम था । गरिष्ठ भोजन वह पचा ही नहीं पाता था । धन संपत्ति उसके पास अपार थी , किंतु किसी भी बड़े - से - बड़े डॉक्टर की दवाई उस पर असर नहीं कर रही थी , क्योंकि उसकी बीमारी केवल मानसिक थी , जो लोभ , चिंता एवं तनाव से जुड़ी हुई थी । एक मित्र ने उसे समझाया कि जब आप मरने ही जा रहे हो , तो अपना थोड़ा - सा धन नेक कामों में क्यों नहीं खर्च कर देते । मृत्यु को साक्षात् सामने खड़ा देखकर उसने भी यही ठीक समझा । अपने धन को सामाजिक कार्यों में खर्च करने के लिए उसने एक ट्रस्ट बना दिया , जैसे ही उसके मन में निष्काम सेवा की भावना जागी , तो उसे एक विशेष आनंद एवं मानसिक शांति का अनुभव होने लगा । इसके बाद उसके अंदर के रोग बिना किसी दवा के ही धीरे - धीरे ठीक होने लगे और देखते ही देखते वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया । अब उसे भूख भी लगने लगी थी । वह सुख की नींद भी सोने लगा था । 


               जो व्यक्ति लोभ के कारण 53 वर्ष की अल्पायु में ही मृत्यु के मुख में पहुंच रहा था । वह 32 वर्ष तक और अधिक सुखपूर्वक जिया । उसकी सोच में परिवर्तन आते ही उसके भीतर एक अनोखे आनंद का स्रोत फूट पड़ा और एक नई ऊर्जा का संचार होने लगा ।

              पहले वह केवल यही सोचता था कि उसके पास किसी योजना को लागू करके , कितना धन आएगा , किंतु अब वह सोचता था कि उसका धन लोगों को कितना सुख पहुंचाएगा ।

              उसने अपने धन से राकफेलर फाउंडेशन की स्थापना की । फाउंडेशन के माध्यम से उसने संसार के लोगों की भलाई का प्रयास किया और सच्ची निष्काम सेवा की ओर अपना कदम बढ़ाया । कंजूस होने के कारण पहले लोग उससे घृणा करते थे , किंतु अब सारे संसार में उसे श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है ।

              इसी कारण लोभ को नरक का द्वार माना जाता है । यह लोभी व्यक्ति को सीधा नरक में धकेल देता है । लोभी व्यक्ति को अपने धन से बहुत अधिक मोह हो जाता है , फिर उसे अपना धन ही सबसे अधिक प्रिय लगने लगता है । अपने आस - पास के लोगों के प्रति उसके मन में शंका रहने लगती है । उसे ऐसा आभास होने लगता है कि लोग छल - कपट से उसका धन हड़प कर लेना चाहते हैं । इसलिए वह किसी पर भी विश्वास नहीं करता । 

              ऐसा व्यक्ति यह भूल जाता है कि वह तो उस धन की केवल पहरेदारी ही कर रहा है और उसे अपने जीवन में उससे कोई भी लाभ नहीं मिल रहा है ।

              लोभ को मन से निकालना बड़ा ही कठिन कार्य है । केवल संतोष की भावना का विकास करके ही इस राक्षस का संहार किया जा सकता है , अन्यथा यह मानव के अंदर कई प्रकार के रोगों को बढ़ाता जाता है ।

             अपने अंदर संतोष का विकास करने के लिए हमें यह समझना आवश्यक है कि धनलोलुपता कई दुखों का कारण बन जाती है । पहले तो धन की प्राप्ति में कष्ट , मिल जाने पर उसकी रक्षा करने के कष्ट और यदि नष्ट हो जाए , तो फिर कष्ट - ही - कष्ट । इसीलिए रहीम कवि ने कहा है :

 गोधन गजधन बाजिधन , और रतन धन खान । जब आए संतोष धन , सब धन धूरि समान ।। 

यह बात भी सदा ध्यान में रखनी चाहिए कि संसार में वही लोग अधिक सुखी रहे हैं , जिनके पास धन बहुत अधिक नहीं था । जो जानते थे कि धन बढ़ने के साथ ही परेशानियां भी बढ़ती जाती हैं ।




9 टिप्‍पणियां:

  1. it is good for me because before read this article i think like that but now i dont do anything like that thank you very much brother.

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  2. सही बात है बिलकुल।

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