भारतीय संविधान अनकही कहानी- Book Summary
हमारे महान देश भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र सिर्फ नाम का लोकतंत्र नहीं ऐसा जिसने समुचित देशवासियों को गर्व और भरोसा है, तभी तो यहाँ एक दूसरे से झगड़ा होने पर बोला जाता है की तुम्हे मैं कोर्ट में देख लूँगा लेकिन संविधान की नींव रखी कैसे गयी कैसे बनाये गए लगभग देश के हर मुददे को ध्यान में रखते हुए इतने सारे कानून क्या क्या हुआ होगा संविधान सभा की बैठकों में जहाँ देश के सबसे बुद्धिमान और अपनी अपनी फील्ड के महारथी लोगों ने अपने थॉट्स रखें और नियम कानून बनाने के प्रस्ताव रखे क्या बिना किसी डिबेट के कानून बन गए होंगे या फिर जो सही लगा वो बना दिया गया जी नहीं छोटी सी छोटी चीज़ का ख्याल रखा गया और ख्याल रखा गया की ये सब चीजें किस तरह भविष्य में देश को फायदा देंगी कैसे भारत एक महान राष्ट्र बनेगा संविधान सभा की इन बसों से लेकर फाइनल डिसिशन तक पहुंचने की पूरी कहानी हमें पता लगी फेमस पत्रकार रामबहादुर राय की किताब भारतीय संविधान अनकही कहानी से और ये जानकारियां थी बहुत कमाल की तो हमने सोचा क्यों ना अपनी फैमिली के मेंबर्स को भी ये सब सुनाया जाए सो हम हो गए हाजिर
भारतीय संविधान अनकही कहानी के साथ तारीख 15 अगस्त 1947
इसी दिन भारत के लोगों ने 200 साल की अंग्रेजों की गुलामी के बाद आज़ादी की हवा में सांस ली थी और फिर बनना शुरू हुआ हमारा संविधान हालांकि इसे बनाने को लेकर सबसे पहला प्रस्ताव साल 1934 में कांग्रेस ने अपने एजेंडे में रखा 26 नवंबर 1949 को 2 साल 11 महीने और 18 दिन की कड़ी मेहनत से संविधान सभा के 299 सदस्यों ने इसे अंतिम रूप दिया सभा के अध्यक्ष थे देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और बनने के बाद इस पर पहले हस्ताक्षर हुए देश के तब के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अब आप कहेंगे कि 26 नवंबर को संविधान तैयार हो गया तो 26 जनवरी को क्यों लागू हुआ इसके पीछे भी कहानी है और ढेरों कहानियाँ हैं संविधान बनने की जो हम आपको इस बुक में बताने जा रहे हैं तो चलिए तय करते हैं सफर भारत के संविधान की अनकही कहानियों का मेरे सिर्फ सोने जो मन चाहे
संविधान सभा के अधिवेशन से भारत का एक पुराना सपना साकार हुआ निर्वाचित सदस्य महीनों से आमंत्रण की प्रतीक्षा कर रहे थे जैसे ही वो मिला वो समय से पहले ही संसद भवन पहुंचे संविधान सभा के शुरू होने की प्रतीक्षा का दृश्य कैसा रहा होगा क्या बहुत उल्लास और उत्साह का वातावरण था साधारणता ऐसा ही होना चाहिए था जो वातावरण उस दिन उस प्रहर में था उसके लिए कल्पना लोक में विचरने की कोई जरूरत नहीं है संविधान सभा के कई सदस्यों ने इस बारे में अपने संस्मरण लिखे और बोले हैं उनसे एक शब्द चित्र बनता है जिससे आज भी उस पूरे माहौल की इ झलक को चेतन मन में अंकित करना संभव है
वैसे ही जैसे सफेद पर्दे पर तस्वीर दिखती है स्वाभाविक रूप से कोई भी कल्पना करेगा कि वो घड़ी उल्लास उत्साह और उत्सव की रही होगी लेकिन जाने माने संविधानविद केएम मुंशी के संस्करण में वो यथार्थ है जो उन्होंने देखा और यथावत लिपिबद्ध किया चारों तरफ उत्तेजना थी भारत के लिए महान दिन प्रकाश से मुकरा था भारतीय अपना संविधान बनाने जा रहे हैं लेकिन असंतोष और अप्रसन्नता चारों तरफ है करीब 75 साल पहले की उस ऐतिहासिक घटना के बारे में आज जो कोई भी ये सुनेगा की
उस समय जब संविधान सभा के सदस्य संसद भवन में आ गए थे तब उत्तेजना असंतोष और अप्रसन्नता थी वह उन कारणों को जानने के लिए उत्सुक हो उठेगा वो खुद से पूछेगा कि आखिर ऐसा क्यों था इसका गवाह इतिहास स्वयं है इतिहास से बड़ा न्यायकर्ता दूसरा नहीं होता परिस्थितियां विपरीत थी लेकिन संविधान सभा के सदस्यों का संकल्प उससे अब प्रभावित था इसलिए वे एकत्र हुए संविधान निर्माण का निश्चय उन विपरीत परिस्थितियों से कदापि डाँवाडोल नहीं हुआ लेकिन ऐसा भी नहीं था कि संविधान सभा के सदस्य चिंतामुक्त हो उन्होंने देखा कि संविधान सभा पर आशंका के काले घने बादल है
इससे जो मनोभाव बना वो उत्तेजना में दिखा इसकी कल्पना की जा सकती है ये उन आशंकाओं से उत्तेजना का तत्व सदस्यों के मन और भावना में उपजा होगा उनके मनोभाव नहीं थे इतिहास के पन्नों में वे घटनाएं अंकित है पहली घटना वो थी जिसमें एक तरफ मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल हुई तो दूसरी तरफ उसने नोआखाली सहित अनेक स्थानों पर भीषण उत्पाद कराया उससे राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई महात्मा गाँधी ने 2 अक्टूबर 1946 को अपना 77 वां जन्मदिवस मनाया वे उन दिनों दिल्ली के बिड़ला मंदिर के पास वाल्मीकिनगर की भंगी कॉलोनी में रहते थे
उनके जन्मदिन पर कैबिनेट मिशन के सदस्य स्टेफोर्ड क्रिप्स ने उन्हें लिखा
आपने भारत की स्वतंत्रता का ध्येय सिद्ध करने के कार्य में अनेक वर्ष लगाए हैं मैं कामना करता हूँ क्या आप दीर्घजीवी हो कम से कम 125 वर्ष की आयु उपाय जिससे आप अपने परिश्रम को भारतीय जनता के सुख के रूप में परिणित होता हुआ देख सकें ये बड़ा कठिन काल है फिर भी हम सही दिशा में प्रगति कर रहे हैं कुछ कदम हम और चलने तो ये महान कार्य पूर्ण हो जाएगा और फिर भारतीय स्वतंत्रता की सिद्धि का आनंद हम सब मिलकर मना सकेंगे
लेकिन उनकी शुभकामना ने कुछ दूसरा ही प्रभाव डाला प्यारेलाल ने लिखा है अंतरिम सरकार में आने के मुस्लिम लीग के निश्चय की घोषणा 15 अक्टूबर को हुई गाँधी जी को लगा कि अब वे सेवाग्राम लौटने को स्वतंत्र है वहाँ कितने ही कार्य उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे उनके प्रस्थान के लिए 27 अक्टूबर की तारीख तय हुई थी परन्तु
जिस दिन सरकार में सम्मिलित होने की लीग के निर्णय की घोषणा हुई
उसी दिन मुसलमान जाति की ओर से पूर्वी बंगाल के मुस्लिम बहुमत वाले नोआखाली जिले में व्यापक सांप्रदायिक दंगे फूट पड़ने के समाचार आए,
वहाँ हिंदुओं के हजारों घर जलाकर राख कर दिए गए, बड़े पैमाने पर लूटमार मची जबरदस्ती से लोगों का धर्म बदला गया और मुसलमानों के साथ हिंदू स्त्रियों का विवाह करा दिया गया लोगों की हत्याएं की गई स्त्रियों का अपहरण किया गया और उन पर बलात्कार किया गया,
इन सब घटनाओं से गांधीजी की आत्मा में अवर्णनीय अंधकार छा गया और सेवाग्राम लौटने के बजाय कभी ब्लैक के स्वर्ण तंतु का सिरा हाथ में लेकर वे यह समस्या हल करने के लिए नोनुआ खाली की दिशा में चल पड़े इस भयंकर घटना से अंतरिम सरकार में परस्पर अविश्वास और लक्ष्य में टकराव की परिस्थिति पैदा हुई ऐसे हालात में भविष्य पर प्रश्न था
Indian Constitution
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